*ग़ज़ल*

🌴 *ग़ज़ल*🌴

जिंदगी बीमार सी लगने लगी,                     
बदरंग दीवार  सी लगने लगी।
मज़दूर कोअब गाँव की हरेक छत
कु़तुब की मीनार सी लगने लगी।
प्यार भी अब शर्त पर होने लगा,
रिश्तगी ब्यापार सी लगने लगी।
ये तरीका़ अब हुआ तक़्सीम का,
चुप्पियाँ दीवार सी लगने लगी।
नज़रें हैं या तराजू के पलडे़ हैं दो,
जी़स्त भी मिक़दार सी लगने लगी  
बाद शादी के बदला लहजा तेरा,
तू मेरी सरकार सी लगने लगी।
*तारक* को तूफाँ,साहिल से ज्यादा अजी़ज़,
मौज भी पतवार सी लगने लगी।
🌴🌴 *तारक नाथ चौधुरी*
                से.नि.व्याख्याता
                   चरोदा(दुर्ग)🌴🌴

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