*परजीवी*
🐞 *परजीवी*🐞
जितना सहज है
'परजीवी'
शब्द को परिभाषित करना,
उतना ही दुष्कर है-
उसके साथ जीना.....
विविध रुप-रंगों में,
पृथक् परिवेशों में पलते
दृश्य-अदृश्य परजीवी
जानते हैं केवल
परपोषी(होस्ट)का
विनाश कर
स्वयं का विकास करना।
अमरबेल सा फैलकर
हमारे जीवन में-
चूस लेते हैं सारा सत्व-
अस्तित्व का......
घर में बच्चे,
परिवार में रिश्ते,
दफ्तर में अधिकारी,
समाज में नेता,
स्वयं में क्रोध,लोभ....
आह!
इतने सारे पैरासाइट्स
और अकेला जीवन-
जीर्ण-शीर्ण खंडहर सा
*मृतप्राय*!
🌴तारक नाथ चौधुरी🌴
से.नि.व्याख्याता🌴
Extremely touched 👏
ReplyDelete👌👌👌
ReplyDeleteप्रश्न विचारणीय है किंतु समाज में परजीवी का फैलाव इतना अधिक फैल चुका है कि इस पर विजय पाना संभव प्रतीत नहीं होता। अंदर से बाहर तक, ऊपर से नीचे तक, आगे सी पीछे तक, दाएँ से बाँये तक परिजीवी काजल की तरह छाए हैं। काजल की कोठरी से श्वेत वसन का बचाकर निकलना असंभव भले न हो, कठिन जरूर है।
ReplyDeleteइस अदृश्य काल कोठरी से निकल न पाने की छटपटाहट सू प्रसूत होती है,*कविता*!रचना पर अपना अभिमत प्रकट करनू का धन्यवाद
ReplyDeleteDifferent Parasites yet single function..
DeleteSuper mama